रोजा खोलणे की दुवा - Roza Kholne Ki Dua

Shweta K
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रोजा खोलणे की दुवा - Roza Kholne Ki Dua
Roza Kholne Ki Dua

Roza Kholne Ki Dua In Arabic

اَللّٰهُمَّ اِنِّي لَکَ صُمْتُ وَ بِکَ اٰمَنْتُ وَ عَلَيْکَ تَوَ کّلْتُ وَ عَلٰى رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ

Roza Kholne Ki Dua In English

Allahumma inni La Ka Sumtoo Wa Bi Ka Aamantoo Wa Alaika Tawakkaltoo Wa Ala Rizkee Ka Aftartoo.

Roza Kholne Ki Dua Ka Tarjuma

ऐ अल्लाह मैंने तेरी खातिर रोजा रखा और तेरे उपर ईमान लाया और तुझ पर भरोसा किया और तेरे रिज्क से इसे खोल रहा हूं।

रोजा खोलने से जुड़ी ज़रूरी बाते

  • रोजा खोलने से पहले वजू करना चाहिए।
  • रोजा खोलने से पहले दुआ करना चाहिए।
  • रोजा खोलते वक्त बातें नहीं करना चाहिए।
  • रोजा हमेशा खजूर या पानी से खोलना चाहिए।
  • रोजा खोलने के बाद भी अल्लाह से दुआ करना चाहिए।

रोजा इफ्तार करने का सही तरीका

सबसे पहले आप सही से वजू कर के इफ्तार यानी रोजा खोलने के लिए बैठें क्योंकि मगरिब में नमाज के लिए बहुत ही कम वक्त होता है।

जब इफ्तार यानी रोजा खोलने का वक्त हो तो दस मिनट पहले ही सब यानी पुरी फैमिली एक जगह जमा हो जाएं मर्द व औरत अलग अलग बैठें।

इसके बाद दुआ दिन दुन्या व आखिरत के खातिर और जब अजान होना शुरू हो जाए तब दुआ पढ़ कर रोज़ा खोलें फिर जब तक अज़ान मुकम्मल न हो जाए तब तक बैठे रहें।

अज़ान मुकम्मल हो जानें के बाद अज़ान के बाद की दुआ पढ़ लें इसके बाद जो भी हो आप खाए पिएं और नमाज अदा करने चले जाएं हमेशा रोजा खुजूर से खोलें और खुजुर न हो तो पानी से खोलें।

हज़रत सुलेमान बिन आमिर रजियल्लाहु तआला अन्हुं बयान करते हैं कि, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब तुम में से कोई इफ्तार करे तो उसे चाहिए कि खजुर से करे क्योंकि इसमें बरकत है अगर खजूर न हो तो पानी से करे क्योंकि पानी पाक होता है।

रोजा खोलने की दुआ से जुड़ी एक ख़ास हदीस

एक हदिस पाक के तहत हज़रत मुल्ला अला कारी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि इब्ने मलिक ने कहा कि आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इसी दुआ को ‘अल्ला हुम्मा लका सुम्तू व अला रिज्किका अफ्तरतू’ इफ्तार के बाद पढ़ते।

रोजा खोलने से जुड़ी कुछ खास हदीस शरीफ जानें

हदीसे कुदसी में है कि अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है मेरे बन्दों में मुझे सबसे ज्यादा महबुब वह है, जो इफ्तार में जल्दी करते हैं।

इस लिये हुज़ूर सैय्यद ए आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम का मामूल था कि सूरज डुबने से पहले किसी सहाबी को हुक्म फरमाते कि वह बुलन्दी पर जा कर सूरज देखता रहे।

सहाबी सूरज को देखते रहते और हुज़ूर उनकी खबर को मुन्तजिर रहते जैसे ही सहाबी अर्ज़ करते कि सुरज डूब गया हुज़ूर फ़ौरन तनावुल फरमाते।

हजरत सहल बिन सअद रजियल्लाहु अन्हुं बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत के लोग भलाई पर रहेंगे जब तक वह रोजा जल्द इफ्तार करते रहेंगे।

हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रजियल्लाहु तआला अन्हुंमा बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया मुझे रोजे में जल्दी इफ्तार करने और सेहरी में ताखिर का हुक्म दिया गया है।

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